ऋिद्धि सिद्धि विधाविविध संकल कला की खानि
विपुल तेज बल अतुल जिमि सिद्वा दाससुजानि
बंदऊ पंद पंकज विमल गहि कर लेहु उबार
हरहु नाथ संकट विकट महिमा अमित तुम्हार
जय सत गुरू जय सिद्धा दासा
जय शिव प्रिय हर गाँव प्रकाशा
जय जय दूलन प्रान पियारे
जय सतनाम पंथ उजियारे
योगिराज जय दीन दयाला
भूताधिप जय जयति कृपाला
जपी तपी जय जय बल राजू
जय जय जयति संतसिर ताजू
जय जय शोभा सिन्धु खरारी
जय गुन राशि भक्त हितकारी
सोहत भाल तिलक अति नीके
कोटि दिवाकर लागत फीके
शुभ्र टोपिका सोहै कैसे
शिव सिर शशि मन मोहे जैसे
पाँव खडाऊँ रतन बिराजै
कर कुबरी श्वेताम्बर साजै
कंठन अति सोहै जय माला
चरन गहे कोटिक महिमाला
ऋिद्धि सिद्धि कर वाँये सोहै
सत्यनाम दूलन उर मोहै
तन अति तेज सहज मुस्काना
कर न सकै कोऊ रूप बखाना
एक दिवस गुरू माता बोळी
सुतहित नयन प्रीति रस घोली
सुनहु सत्य दूलन के चेरे
सुत बियोग हृदय अति मोरे
बिनु सुत मम गृह लागत एैसे
बिनु शशि नभ तारा गन जैसे
श्रवण बात सब सिद्धा कीन्ही
नाइ माथ पुनि आयसु लीन्ही
गुरू सम्मुख तब पहुँचे जाइ
देखि दशा दूलन मुस्काई
सिद्धा पुनि पूजत गुरू चरना
सुनहु तात आयऊ तब शरना
कृपा करहु हे भाग्य बिधाता
सुत बिन बिकल भई गुरूमाता
मेटन हार विधी कै रचना
सतगुरू तब बोलेऊ अस बचना
सत्य-सत्य दुलन अस भाषा
होइहहि पूर तोर अभिलाषा
सिद्धा सुत लीन्ही एहि भाँती
सुनि गुरू मात जुडानी छाती
केहि बिधि कहौ तोर पर तापा
कहि न सकहि को बिद कोऊ ज्ञाता
तुम बनिया को नाव उबारे
नृप समेत राखेहु परिवारे
दुर्बलि दास मनुजपुनि कीन्हा
दधि लै भक्त मान रख लीन्हा
शक्ति आसुरी मायाबी कर
मर्द-मर्द डारो महि उपर
कृपा तात तुम सबपर कीन्हा
सात लाल बनिया को दीन्हा
एक दिवस नागा बहु आये
गद्दी पर उत्पात मचाये
अरजी कीन्ह महन्त दुःखारी
कीन्ह कृपा दीनन हितकारी
नागन की सब सिद्धि नशानी
तब सिद्धा कर कीर्ति बखानी
हरेहु तात तोमर कर शापा
दीनन के तुम भाग्य बिधाता
जगन्नाथ कर पुजेऊ चरनन
होइ प्रसन्न दीन्हेऊ तव दरशन
अँधा नयन बाॅझ सुत पावै
जो सिद्धा कर कीरति गावै
अभरन कुण्ड करै स्नाना
ताको रोग कबहु नाहि जाना
घोर कष्ट जब नर कोई पावै
तुरतहि अभरन कुण्ड नहावै
शिव लिंग कर कीजै दरशन
पुनि पूजै सिद्धा कर चरनन
सत्य सत्य देबी अस भाषेे
उदय भाग्य मनमंशा राखै
बंध्या जो नित पढै चलीसा
निश्चय सुत देइहइ जगदीसा
लाइ सदन निज धरई बिभूती
नहि दरिंद्र नहि होइ निपूती
बिद्यारथी धरहिं उर ध्याना
दाहिन ताको शारद जाना
पारिजात कलिकाल महुँ सिद्धा दास सुकीर्ति
पढै सुनै जिमि चालीसा ताको नहि भवभीति
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