卍 ॐ सिद्धा सतगुरू नमो नमः सिद्धा साई नमो नमःl दुलन प्यारे नमो नमः सब सुख दायी नमो नमःll 卍

Wednesday, 18 October 2017

आरती

आरती

भारत के महान संतसतनामी संतबाबा सिद्धादाससाहेब सिद्धादासबाबा साहेबसिद्धादाससिद्वादास बाबा।
                        षिश्य श्री दूलन दास (धर्मे धामषिश्य श्री समर्थ साहेब जगजीवन दास (कोटवाधाम)
                        धाम हरगाँवजामोंजगदीषपुरगौरीगंजमुसाफिर खानाअमेठीसुल्तानपुर0प्र0

आरति सिद्धादास चरन की,
पद नख ज्योति अनूप वरन की
तुम हो दूलनदास को चेरा, तव हिय सत्यनाम प्रभु डेरा,
निज कर प्रभु तव काज सँवारयो सिद्धि नाहगुरू नाम धरन की
जो तुमको सत् भाव पुकारत, काटहु आरत हर मम आरत,
तासु त्राण हित् बार लावत, चरण राखि चित मोद करन की
प्रभु तुम नर तन धर महि आये, निज भक्तन कलि पास छुड़ाये,
अमित प्रभाव तुम्हार जो जानत, और देव किन आस करन की
आधि व्याधि और कुश्ठ दुखारे, आवत साहेब षरण तुम्हारे,
अभरन कुण्ड में डुबकी मारे, व्याधि कुश्ठ सब दूर करन की
वन्ध्या द्वार तिहारे आवत, पुत्र काम हित टेर लगावत्,
पुत्र देत तेहि षोक मिटावत, गोद माँग दोउ पूरि करन की
भाँति-भाँति के दीन दुखारी, आवत देख्यो षरण तुम्हारी,
जायँ लौट चित होय सुखारी, आष आर्तजन पूरि करन की
सुकृति वीज तुम महि पर डारे, तुम भक्तन के भक्त तुम्हारे,
सत्यनाम पथ के रखवारे, आदि षक्ति चित नाम धरन की
तुम तजि और कौन पे जाऊँ, निसि वासर मुख तुम्हारो नाऊँ,
षंकर दासको और ठाऊँ, जनम-जनम लव देहु चरन की

धन-धन कोटवा धाम
कोटवा की माटी भली धन्य-धन्य सव लोग,
वृम्ह जहाँ पर अवतरेउ वनि जगजीवन लोग
जॅह जॅह जगजीवन  धरन तहॅ की माटी हीर,
अमृत रस को मेघ बनि जह वरसे रघुबीर
जग जीवन जॅह अवतरेऊ, घनि -घनि कोट वा धाम,
चारिव पावा चैदह गद्दी , नाम जपहि सत्नाम

भगत निर्वाण
पुरूशारथ साधन करै पावा चारि बनाय,
भुवन चारिदष र्दषकों- चैदह गद्दी लरवाय
वूडि हौ पहि पझ्धार मे रेमन नाहि डेराऊ,
जगजीवन जू आइहे चढ़ि सत् नामी नाव
सत नामी की नाम चदि चलो चली सत् लोक,
भगति करौ सतनाम की, रहै नही कहुं षोक

धन सतनाम महिमा
सत लखै सतनाम लखै, लखै अलख अपार,
एक बार जगजीवन लख्खै, लख चैरासी पार 1
सत् राखै सतनाम रखै, रखै राम को नाम,
जगजीवन जाके रखै, वही रमइया राम 2
सत् जापै सतनाम जपै, जप जगजीवन दास,
कोटवा के समरथ गुरू, पूर करै अरदास

जग जीवन रहि
दस के दस वावरी वधू विशपति दे समुझाय,
जग जीवन जगळे पिया लेहि अंग लपटाये
मोहि चुनरि सतनाम की रंग दे रे रंगरेज,
जगजीवन मोरेपिया सोऊं सुख की सेज
ओढ़ि चुनरि सतनाम की, रेख विभूति लगाय,
जगजीवन मे रहि करौ, सो सुख कहा समया
जगजीवन जाके पिया सुरब सतनाम अपार,
छक-छक पीवे प्रेम रस, वरसे अमृत चार



No comments:

Post a Comment