आरती
आरति सिद्धादास चरन की,
पद नख ज्योति अनूप वरन की ।
तुम हो दूलनदास को चेरा, तव हिय सत्यनाम प्रभु डेरा,
निज कर प्रभु तव काज सँवारयो सिद्धि नाहगुरू नाम धरन की ।
जो तुमको सत् भाव पुकारत, काटहु आरत हर मम आरत,
तासु त्राण हित् बार न लावत, चरण राखि चित मोद करन की ।
प्रभु तुम नर तन धर महि आये, निज भक्तन कलि पास छुड़ाये,
अमित प्रभाव तुम्हार जो जानत, और देव किन आस करन की ।
आधि व्याधि और कुश्ठ दुखारे, आवत साहेब षरण तुम्हारे,
अभरन कुण्ड में डुबकी मारे, व्याधि कुश्ठ सब दूर करन की ।
वन्ध्या द्वार तिहारे आवत, पुत्र काम हित टेर लगावत्,
पुत्र देत तेहि षोक मिटावत, गोद माँग दोउ पूरि करन की ।
भाँति-भाँति के दीन दुखारी, आवत देख्यो षरण तुम्हारी,
जायँ लौट चित होय सुखारी, आष आर्तजन पूरि करन की ।
सुकृति वीज तुम महि पर डारे, तुम भक्तन के भक्त तुम्हारे,
सत्यनाम पथ के रखवारे, आदि षक्ति चित नाम धरन की ।
तुम तजि और कौन पे जाऊँ, निसि वासर मुख तुम्हारो नाऊँ,
‘षंकर दास’ को और न ठाऊँ, जनम-जनम लव देहु चरन की ।
धन-धन कोटवा धाम
कोटवा की माटी भली धन्य-धन्य सव लोग,
वृम्ह जहाँ पर अवतरेउ वनि जगजीवन लोग ।
जॅह जॅह जगजीवन धरन तहॅ की माटी हीर,
अमृत रस को मेघ बनि जह वरसे रघुबीर ।
जग जीवन जॅह अवतरेऊ, घनि -घनि कोट वा धाम,
चारिव पावा चैदह गद्दी , नाम जपहि सत्नाम ।
भगत निर्वाण
पुरूशारथ साधन करै पावा चारि बनाय,
भुवन चारिदष र्दषकों- चैदह गद्दी लरवाय ।
वूडि हौ पहि पझ्धार मे रेमन नाहि डेराऊ,
जगजीवन जू आइहे चढ़ि सत् नामी नाव ।
सत नामी की नाम चदि चलो चली सत् लोक,
भगति करौ सतनाम की, रहै नही कहुं षोक ।
धन सतनाम महिमा
सत लखै सतनाम लखै, लखै अलख अपार,
एक बार जगजीवन लख्खै, लख चैरासी पार 1 ।
सत् राखै सतनाम रखै, रखै राम को नाम,
जगजीवन जाके रखै, वही रमइया राम । 2
सत् जापै सतनाम जपै, जप जगजीवन दास,
कोटवा के समरथ गुरू, पूर करै अरदास ।
जग जीवन रहि
दस के दस वावरी वधू विशपति दे समुझाय,
जग जीवन जगळे पिया लेहि अंग लपटाये ।
मोहि चुनरि सतनाम की रंग दे रे रंगरेज,
जगजीवन मोरेपिया सोऊं सुख की सेज ।
ओढ़ि चुनरि सतनाम की, रेख विभूति लगाय,
जगजीवन मे रहि करौ, सो सुख कहा समया ।
जगजीवन जाके पिया सुरब सतनाम अपार,
छक-छक पीवे प्रेम रस, वरसे अमृत चार ।
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