एक बार एक वणिक अपनी नौका द्वारा विदेष, व्यापार से वापस लौट रहा था । इस बार व्यापार में उसे बहुत लाभ मिला था। उसकी नाव धन से लदी थी, कि इसी बीच में एक झटका लगा और फिर देखते ही देखते उसकी नाव डूब जाने की स्थिति में हो गयी । वणिक को कुछ सूझा । उसने बाबा सिद्धादास का नाम सुन रखा था । अतः उसने साहेब के नाम की टेर लगायी और मनौती की कि सकुषल पार लग जाने पर मैं सात अषर्फियाँ चढ़ाऊंगा । इधर करूण पुकार के कारण साहेब सिद्धादास का षरीर हिल गया । वह उस समय दाढ़ी बनवा रहे थे । नाई के देखते ही देखते उनका (सिद्धादास का) षरीर निश्प्राण हो गया। थोड़ी देर बाद बज इनकी चेतना लौटी तो इन्होंने देखा की नाई बहुत घबड़या हुआ है । उसका घबराना भी उचित ही था, क्योंकि षरीर के हिलने के कारण उनकी दाढ़ी में उस्तुरा लग गया था और अचानक षरीर का निश्प्राण हो जाना भी चिन्ता और घबराहट का कारण था । दाढ़ी से खून बह रहा था । जिसको देखकर नाई घबराकर हाथ जोड़कर साहेब से माफी मांगने लगा । साहेब ने उसे समझा -बुझाकर उसके अषान्त हृदय को षान्ति दी ।
समय बीतने के बाद एक दिन वह वणिक साहेब के दर्षन के निमित आया । साहेब मड़नी में झाड़ू लगा रहे थे । उसने साहेब से ही साहेब का नाम पूछा, तो साहेब ने कहा कि चलो, अभी बताता हूं । घर पर आकर साहेब ने हाथ-पांव धोया और फिर वणिक से बोले कि सिद्धाादास तो मैं ही हू , बताओ क्या काम है ? जब उसने इतना सुना तो अवाक् रह गया, उसकी आषाओं पर पानी फिरता नजर आया, उसने सोचा कि साहेब ऐसे नहीं हो सकते । जिसमें इतनी अलौकिक षक्ति हो, वह कोई महान योगी ही होगा और कहीं बैठा तपस्या में लीन होगा । इसकी बात को सोचकर उसने मात्र तीन अषर्फिया साहेब के चरणों में समर्पित की । साहेब बाबा उसके मन की बात को तुरन्त तड़ गये और बोले -
‘‘भक्त ! मैं जनता हूं कि मेरे पास दुनिया के सन्तों जैसा दिखावा नहीं है, पर मैं तुम्हारे भ्रम को दूर करता हूं ।’’ साहेब ने वणिक को अपनी पीठ खेलकर दिखायी और कहा कि ‘ये देखो तुम्हारी नाव की कीलों के निषान आज भी मेरी पीठ में है । तुम नाव डूबने पर लाखें अषर्फियां और अपनी जान से भी हाथ धो बैठते, पर मुझे सात की जगह तीन ही अषर्फिया दे रहे हो ।’ अन्तर्यामी की इस बात को सुनकर वणिक का षरीर भयवष कांपने लगा। उसने पांवो पर गिरकर माफी मांगी और अषर्फियाँ साहेब को समर्पित की। तभी से व नियम-पूर्वक साहेब का दर्षन करने आने लगा और वह साहेब का प्रिय षिश्य बन गया ।
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