एक बार एक बनिया साहेब दूलनदास के पास आया और साहेब से हाथ जोड़कर कहा कि -‘‘साहेब’’ आप तो दीन दुखियों पर कृपा करने वाले है, कृपा करके हमारे दुःख को दूर करें ।’’ तब साहेब ने कहा-‘‘भक्त ! तुम्हे क्या दुःख है ?’’ साहेब की इस अमृत मयी वाणी को सुनकर बनिया बोला, ‘‘साहेब ! आपकी कृपा से हमारे पास सब कुछ है, लेकिन एक सन्तान नहीं । यही हमारे दःख का कारण है ।’’ भक्त की बात सुनकर साहेब दूलनदास ने एक पत्र लिखा और बनिया को उसे देते हुए कहा कि इसे ले जाकर हरगाँव में एक साहेब सिद्धादास हैं, उनको दे देना । इतना कहकर उसे विदा कर दिया ।
वह बनिया हरगाँव आया और दूलनदास साहेब का पत्र साहेब सिद्धादास को देकर चरणों मे गिरकर, प्रमाण किया । साहेब ने आर्षीवाद देकर उसे बैठने के लिए कहा और स्वयं पत्र खोलकर पढ़ने लगे । पत्र पढ़ने के बाद साहेब ने सोचा और कहा कि ठीक है, मैं कल तुम्हारे साथ चलूगाँ ।
दूसरे दिन साहेब बनियां के घर गये, वहाँ पर बनियाँ दोनों प्राणी ने साहेब का प्रेम-पूर्वक पूजन किया और आसन लगा दिया भोजन आदि से निवृत्त होने तक रात्रि काफी बीत चुकी थी । साहेब ने बिस्तर पर जाकर षयन किया । मुष्किल से एक घण्टे सोये और फिर जाग गये, सिद्धादास बाबा से कहा कि-मेरे पेट में दर्द है। मैं दिषा जाना चाहता हू, कोई उचित स्थान बताओ । बनिया बोला ‘साहेब ! इस अंधेरी रात्रि में आप कहाँ जायेंगे । यही बैठ जायें । मैं साफकर दूँगा । तब तो साहेब बारी-बारी से पाँच बार दिषा बैठे और जब छठीं बार बैठने को हुए तो बनिन को बुरा लगा, उसने सोचा कि कहाँ तो हम साहेब को लड़का पाने के लिए बुलाए थे और यहाँ आकर इनको पेटखरहरी लग गयी । साहेब बनिन के मन की बात ताड़ गये और तुरन्त ही सारा नाटक समाप्त कर दिया और फिर सारी रात नहीं उठे ।
प्रातः काल साहेब उठे और नित्यकर्म से निवृत्त होकर जब चलने के लिए कहा तो बनिया ने सोचा, ‘यहाँ पर आये थे पुत्र देने कोई जोग-जुगुत भी न करवायी और अब जाने की तैयार हो गये ।’ साहेब बनिया के मन की बात जान गये और कहा, ‘सुनो ! तुमने पाँच बार तक अपने मन को साफ रखा और छठीं बार तुम्हारी पत्नी के मन में दुराव आ गया । अतः तुम्हें पांच पुत्र दूलनदास ‘साहेब की कृपा से मिलेंगे ।’ बनिया साहेब की बात सुनकर प्रसन्न हो गया । उसने साहेब के पद कमल की बार-बार वन्दना की और प्रभूत द्रव्य न्योछावर करके साहेब को विदा किया । ठीक नौ मास बाद उसे एक पुत्र पैदा हुआ और फिर जैसे-जैसे समय बीतता गया, एक-एक करके पाँच पुत्र पैदा हुए, जिससे उसके घर में खुषी ही खुषी छा गयी, जो साहेब बाबा की कृपा का फल था ।
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