साहेब सिद्धादास के चार चेला सिद्ध हुए थे । उसमें साहेब दुर्बलीदास का भी स्थान था । साहेब दुर्बलीदास ब्राह्मण थे, जिनका निवास स्थान गोरखपुर के मौजा विलासपुर में था । एक बार साहेब सिद्धादास दुर्बलीदास के यहाँ जा रहे थे, इनके साथ में, एक सेवक भी था । मार्ग में साहेब एक कुएं पर रूके और सेवक से कहा कि ‘यह स्थान उपयुक्त है, यहीं पर रूककर स्नान-ध्यान और पूजा कर लें, तब आगे चलें ।’ इतना कहकर अपने सेवक को पूजा की अग्नि लाने के लिए, पास के गाँव में भेज दिया । काफी समय बीत गया, साहेब स्नान करके बैठे थे, पर सेवक वापस न आया । अब साहेब को चिन्ता हुई । अतः उन्होंने ध्यान में देखा तो सारी बात का पता चल गया और तुरन्त गाँव की तरफ चल पड़े । गाँव में साहेब एक घर के पास जाकर वहाँ खड़ी एक औरत से पूँछा ‘यहाँ पर मेरा आदमी आया है । औरत ने तपाक से कहा ‘नही ।’ यहाँ पर कोई आदमी नहीं आया है । साहेब समझ गये कि इतनी आसारनी से काम नहीं चलेगा अतः वह घर के अन्दर चले गये । वहाँ पर एक चारपाई खड़ी करके रखी थी और उसके पीछे एक भेड़ा बंधा था । साहेब को तो सब ध्यान से पता चल ही गया था । अतः उन्होने चारपाई हटाकर भेड़ा के मुँह पर थप्पड़ मारा, थप्पड़ के पड़ते ही उस भेड़ा के मुँह से पान का एक बीड़ा निकला, बीड़ा के निकलते ही व मानव रूप में बदल गया । यह वही साहेब का सेवक था, जिसे साहेब ने अग्नि लाने के लिए भेजा था और जिसे एक महिला ने जादुई पान का बीड़ा खिलाकर भेड़ाा बना था । अब साहेब ने उसके पूरे परिवार को भेड़ा बना दिया तथा उस महिला से कहा कि यदि तुम्हें मनुश्यों को भेड़ा बनाने का षौक है, तो तुम्हारा परिवार ही भेड़ा बना है । अब अपना षौक पूरा करो । महिला अपने परिवार के सदस्यों को भेड़ा से मनुश्य बनाने में स्वयं को असमर्थ पाकर साहेब के चरणों में गिर पड़ी । तभी और भी गांव के लोग वहाँ आ गये और महिला को बहुत बुरा भला कहते हुए साहेब से उसकी गलती के लिए क्षमा माँगी । साहेब तो उदार हृदय थे ही, उन्होने उसे क्षमा कर दिया और सारे परिवार को पुनः मनुश्य बना दिया। वे लोग साहेब के अनन्य भक्त बन गये और साहेब से दीक्षा ली । वहाँ पर कुछ समय रूककर साहेब दुर्बलीदास के यहाँ गये । इस प्रकार अपने योगबल से उन्होंने एक छली औरत के जादू को प्रभाव- हीन कर दिया और उसे सन्मार्ग पर लाकर खड़ा कर दिया ।
No comments:
Post a Comment