साहेब सिद्धादास जब भी अपने गुरू के दर्षनार्थ जाते थे तो महन्थिन साहेब उन्हें ‘निर्वषी’ कहकर सम्बोधित करती थी । एक दिन साहेब ने गुरू-माता से निर्वषी कहने का करण पूछा तो उन्होंने कहा कि कम से कम साहेब से कहकर मेरे बाँझ कहलाने का कलंक तो मिटा दो और तुम भी निर्वषी कहलाने से छुटकारा पा जाओ । यहाँ पर साहेब को दूलनदास साहेब बहुत मानते थे । (और दूसरे साहेब दूलनदास ने गद्दी के लिए तत्कालीन संघर्श को देखकर, अपने और साहेब सिद्धादास के सन्तान न होने का षाप दिया था) काफी समय तक साहेब दूलनदास और साहेब सिद्धादास को सन्तान न हुई तो साहेब की धर्मपत्नी को चिन्ता होना स्वाभाविक था । जब साहेब ने इस बात को साहेब दूलनदास से कहा तो साहेब दूलनदास ने कहा ‘‘ठीक है, चिन्ता न करो सन्तान की प्राप्ति होगी और वह भी जल्दी ही ।’’ इसके बाद समय बीतने पर साहेब दूलनदास के साहेब रामबख्ष दास और साहेब सिद्धादास के साहेब वक्तावर दास पैदा हुए । पंडितों ने साहेब रामबख्ष दास की कुँडली तैयार की पर उसमें उनकी उम्र तीस वर्श ही आती थी । इसलिए पडितों को दूलनदास साहेब के सामने जन्म-पत्री पेष करने का साहस नहीं हुआ तथा इस रहस्य को छिपाये रखा । एक दिन साहेब जब गुरू जी के पास पहुँचे तो पडितों ने अवसर पाकर जन्म-पत्री साहेब के सामने रखी, जब जन्म-पत्री पढ़ी गयी तो रामबख्ष दास जी की उम्र तीस साल ही निकली, पंडितों ने बड़ा अफसोस प्रकट किया, लेकिन दूलनदास साहेब को कोई दुःख न हुआ और उन्होंने साहेब सिद्धादास से कहा तुम्हारा क्या विचार है ? साहेब ने कहा-महाराज ! उम्र तो गणनाा में पंडितों ने ठीक ही निकाली है, पर मेरे विचार से इसे दूना कर दिया जाय तो सत्गुरू को भी मान्य होगा, पर पण्डितो ने कहा महाराज ! हम लोगों ने बहुत प्रयास किया लेकिन कोई भी गुन्जा इस न मिली, पर आप समर्थ हैं, सब कर सकते है । इस अलौकिक कार्य के लिए साहेब दरबार में प्रषंसा के पात्र बने । साहेब दूलनदास ने खुद बड़ी प्रषंसा की और साहेब रामबख्ष दास ठीक साठ साल बाद बैकुण्ठ-वासी हुए ।
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