सत्यनाम सम्प्रदाय के प्रवर्तक समर्थ स्वामी जगजीवन साहब की तपोभूमि श्री कोटवाधाम में स्वामी जी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य पर हजारों भक्त दूर दूर से दर्शनार्थ पधारे हुए थे, सत्संग भजन सुन सुनाकर भक्त आह्लादित हो रहे थे। सत्यनाम सम्प्रदाय के चारों पावाऔर चौदहों गद्दी के सभी समर्थ साहबान एवं अन्य तमाम धर्मास्थलों से पधारे धर्माचार्य संत महंत भक्त सभी समर्थ स्वामी जगजीवन साहब के मुखारविंद से भगवत चर्चा एवं नाम महात्म का श्रवण कर रहे थे।पूरा दिन कीर्तन भजन और भंडारे के उपरांत कुछ भक्तों ने रात्रि में इच्छा व्यक्त की कि यदि स्वामी जी का आदेश प्राप्त हो जाए तो शास्त्रार्थ का भी आनंद मिल सकता है, धीरे धीरे बात स्वामी जी तक पहुंच गई, स्वामी जी ने कहा !अच्छी बात है, यदि आप सबकी इच्छा है तो अवश्य ही शास्त्रार्थ का आयोजन होना चाहिए, किन्तु शास्त्रार्थ कौन और किसके साथ करेगा?काफी लोगों ने कहा कि हरगांव धाम से समर्थसाहब सिद्धादास जी आए हुए हैं उन्हीं के साथ शास्त्रार्थ कराया जाना चाहिए, तब स्वामी जी ने कहा कि सिद्धादास जी तो बहुत बड़े विद्वान हैं और सिद्ध संत भी, उनके साथ शास्त्रार्थ करेगाकौन?तभी कुछ लोगों ने कहा अगर सिद्धादास साहब से कोई शास्त्रार्थ कर सकता है तो समर्थ साहब देवीदास जी,उनके अलावा और कोई नहीं कर सकता।स्वामी जी ने कहा कि हाँ सिद्धादास जी से देवीदास जी ही शास्तार्थ कर सकते हैं।कल सुबह शास्तार्थ का आयोजन किया जाए।फिर क्या था, सुबह पूजा अर्चना के बाद शास्त्रार्थ शुरू हुआ, पूरा दिन चला ,शाम हुई सन्ध्या आरती औरभोजन प्रसाद के बाद पुनः शास्त्रार्थ शुरू हुआ पूरी रात शास्त्रार्थ चलता रहा, सुबह नित्य कर्म और पूजा अर्चना के बाद पुनः शुरू हुआ शास्त्रार्थ फिर पूरा दिन चला, दोनों सतनामी संत एक दूसरे से शास्त्रोक्त प्रश्नोत्तर करते रहे, एक से बढ़कर एक, अद्भुत दृश्य, अदम्य विद्वता,
ज्ञान की चरम पराकाष्ठा, ऐसा शास्त्रार्थ शायद ही पहले कभी किसी ने सुना हो,पुनः शाम होने को आई कोई किसी से कम नहीं।देवीदास साहब ने स्वामी जी की तरफ़ देखा, स्वामी जी देवीदास जी को देख कर कुछ इस तरह मुस्कराये कि जैसे देवीदास जी से कह रहे हों कि अब बस भी करो वत्स!देवीदास साहब ने मन ही मन अपने आराध्य स्वामी जी को प्रणाम किया और कहा जैसी आज्ञा प्रभू।और तब समर्थ साहब देवीदास जी ने शास्त्रार्थ बन्द करने के उद्देश्य से एक दोहा साहब सिद्धादास जी के सम्मान में पढ़ा;-
जेहिका सबही भजत है, वही आपका ग्राम।
जेहिका भजिकै चहत है, वही आपका नाम।।
समर्थ साहब देवीदास जी का दोहा सुनकर साहब सिद्धादास जी ने भी देवीदास साहब के सम्मान में शास्त्रार्थ के समापन का आखिरी दोहा पढ़तेहुए कहा कि:-
करम कमाई औंटि के,बनै मिष्ठा औ पकवान।
सिद्धादास अस कहत हैं, देवीदास भगवान।।
और दोनों ने एक दूसरे के हृदयँ से लगकर बधाई दी।समर्थ स्वामी जगजीवन साहब ने दोनों को आशीर्वाद दिया।उपस्थित भक्त समूह के समर्थ स्वामी जगजीवन साहब की जय,देवीदास साहब की जय,सिद्धादास साहब की जय के उद्घोष के साथ महान भक्तिमय ज्ञान वर्धक शास्त्राार्थ का समापन हुआ।।
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