卍 ॐ सिद्धा सतगुरू नमो नमः सिद्धा साई नमो नमःl दुलन प्यारे नमो नमः सब सुख दायी नमो नमःll 卍

Sunday, 28 October 2018

कहानी २

          महान सतनामी संत समर्थ साहब सिद्धादास जी हरगांव धाम समर्थ स्वामी जगजीवन साहब के द्वितीय शिष्य समर्थसाहब दूलन दास जी के शिष्य थे।सिद्धादास साहब का नित्य का नियम था कि वे सुबह सबेरेअपने स्थान से चलकर धर्मेधाम अपने सद्गुरु समर्थ साहब दूलन दासजी की सेवा करने जाया करते थे।एक दिन सिद्धादास जी को बुखार हो गया शरीर में तकलीफ हो रही थी, उन्हे लगा कि आज वे साहब की सेवा करने नहीं जा सकेंगे, लेकिन गुरू के प्रति अगाध प्रेम और सेवा भावना इतनी प्रबल कि अत्यधिक शारीरिक कष्ट होने के बावजूद गुरु चरणों का ध्यान करके चल पड़े। लगभग दो तीन कोस चलने के बाद सिद्धादास साहब को चक्कर आने लगा फिर भी वे रुके नहीं अन्ततः वे रास्ते में ही गिर गए, उन्हें बुखार इतना ज्यादा चढ़ गया था कि पूरा शरीर तप रहा था।कुछ देर बाद उस रास्ते से जाने वालेे राहगीरों ने सिद्धादास साहब को रास्ते में पड़े हुए देखा तो उन्हें सहारा देकर पास के गांव में ले गए, गांव वालों ने उनके इलाज के लिए बैद्य को बुलाकर इलाज करवाया, बैद्य जी ने  दवा देते हुए कहा घबराने की बात नहीं है बुखार ज्यादा होने की वजह से चक्कर आगया जल्द ही ठीक हो जाएंगे।शाम को जब सिद्धादास साहब को होश आया तो खुद को बीमार अवस्था में पाकर विचलित हो उठे। लोगों के मना करने के बाद भी वहाँ सेयह कहते हुए चल पड़े कि आज मेरे साहब की सेवा कौन किया होगा?जैसे तैसे धर्मेधाम पहुंचे। दूलन दास साहब ने जब सिद्धादास को देखा तो आश्चर्य में पड़ गए और सोचा  कि अभी थोड़ी देर पहले तो सिद्धादास यहां से गये थे और अभी फिर क्यों वापस लौट आए? लेकिन जब सिद्धादास साहब दूलनदास जी के पास पहुंचे तो उनके पैरों पर गिरकर फूट फूट कर रोने लगे और कहा कि मुझे क्षमा कीजिए प्रभू, आज मैं आपकी सेवा नहीं कर सका,तब दूलनदास जी ने कहा क्या कह रहे हो?अभी थोड़ी देरपहले तो आप यहाँ से गए थे, सारा कार्य आप ने ही तो किया था,और वहां पर उपस्थित लोगों ने भी दूलनदास साहब की बात की पुष्टि की।तब सिद्धादास साहब ने शुरू से लेकर अपनी आप बीती सुनाई जिसे सुनकर सभी लोग आश्चर्य में पड़ गए, तब समर्थ साहब दूलनदास जी ने ध्यान लगाकर देखा तो सारी बात जान गए कि सिद्धादास जी की गुरु भक्ति और गुरु की सेवा करने न पहुंच पाने की व्याकुलता देखकर भगवान स्वयं सिद्धादास जी का रूप धारण कर उनके सदगुरू की सेवा की और सिद्धादास जी के आने से पहले वहाँ से चले गए। दूलनदास साहब ने सिद्धादास साहब को गले से लगा लिया और बोले धन्य हो सिद्धादास तुम्हारी गुरूभक्ति सच्ची निष्ठा और तुम्हारे मन की व्याकुलता देख कर भगवान स्वयं तुम्हारे रूप में आकर तुम्हारा सारा काम करके चले गए।

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