भारत की पवित्र भूमि पर पष्चिम वासो गोरों का राज्य था । उस समय देष के प्रायः समस्त महत्वपूर्ण पदों पर वे ही आसीन थे । वे सन्तों के चमत्कारों पर कम विष्वास करते थे । सुलतानपुर जिले का डिप्टी कमिष्नर भी अंग्रेज ही था । उसने साहेब सिद्धादास के बारे में सुना तो इनकी परीक्षा लेना चाहा, रूमाल में घोड़े की लीद बाँध ली और हरगाँव के लिए प्रस्थान किया । समाधि पर पहुंचकर वही लीद की पुटली पुजारी को प्रसाद रूप में चढ़ाने के लिए थमा दी, स्वयं चैखट पर पाँव व किवाड़ों पर हाथ रखकर खड़ा हो गया । जब पुजारी ने पुटली खोली तो उसमें लड्डू निकला, जब उसे चढ़ाकर पुजारी ने लड्डू की पुटली वापस करनी चाही तो देखा कि उस अंग्रेज अफसर के हाथ-पाँव, किवाड़ों व चैखट पर जैसे जड़ दिये गये हों । यह देखकर व भौचक्का रह गया । डिप्टी कमिष्नर पुजारी से बोला-‘‘यह मेरा हाथ-पाँव नहीं उठ रहा है, चिपक सा गया है । इसे किसी तरह छूड़ाओ ।’’ पुजारी ने कहा, ‘आप साहेब से विनती करें, वे ही छुड़ायेंगे । आपने चैखट पर पाँव रख कर साहेब से की मर्यादा पर आघात किया है । इस पर डिप्टी-कमिष्नर ने बड़ीं अनुनय-विनय की और गलती के लिए माफी माँगी । जब जाकर उसका हाथ-पाँव छूटा । फिर लीद को लड्डू के यप् में देखकर वह हतप्रभ रह गया । इस चमत्कार से प्रभावित होकर वह अपने बच्चों समेत साहेब का षिश्य बन गया । तभी से वह सतनाम पंथ वालों को बड़ा सम्मान करता था और साहेब के दर्षनार्थ आया करता था ।
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