एक बार एक भक्तअपने घर से साहेब के खाने के लिए दही लेकर चला । घर से वह यह सोचकर चला कि मैं दोपहर के भोजन के समय साहेब की दही पहुँचा दूँगा । संयोग से उस दिन रसोई कुछ पहले तैयार हो चुकी थी । अतः इधर साहेब को भोजन के लिये बुलावा हो गया । साहेब दरवाजे पर खड़े किसी के आने का इन्तजार कर रहे थे और फिर यकायक भेजन पाने चले गये । साहेब जब भेजन करके निकले, तो दरवाजे पर एक भक्त ब्राह्मण खड़ा था, इन्हें देखते ह ीवह भा-विभोर होकर चरणों में गिर पड़ा । साहेब ने उसे उठाकर कुषल-क्षेम पूँछा, पर वह बेचैन और उखड़ा-उखाडा था, उसने साहेब से कहा -‘साहेब ! आपतो अन्तर्यामी हैं, आप से क्या बताऊँ ? साहेब बोले तुम चिन्ता मत करो, तुम्हारा दही मुझे मिल चुका है और मैंने उसे पा भी लिया है । भक्त बोला, साहेब ! वह दही तो रास्ते में मटकी के फूट जाने से बह गया, भला आपने कैसे पा लिया । साहेब बोले, दही हमारे पास पहुंच गया और अगर तुम्हें विष्वास नही है, तो तुम्हारी मटकी हमारे पास है । इतना कहकर साहेब ने घर सेमटकी मंगवायी । अपनी ही मटकी को वह फटी-फटी सी आँखो को देखता रहा और म नही मन साहेब के इस अलौकिक चमत्कार से अह्नादित होता रहा तथा अपने की धन्य माना । इस घटना से सम्बन्धित भक्त के खान-दान के लोग आज भी इस दिव्य घटना की चर्चा बड़े प्रेम से करते है ।
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