एक दिन धाम हरगाँव में उज्जैन के नागाओं की जमात आयी । जमात काफी बड़ी थी लगभग सौ नागा, हाथी, घोड़े, ऊँट आदि थे । नागा लोग चारो तरफ फैल गये और लोगों से जबरदस्ती पैसा वसूल करने लगे । कई दिन तक पड़ाव पड़ा रहा । लोग तंग आ चुके थे । यहाँ तक की महन्त साहेब हरगाँव, कोट हरगाँव, कोट भवनषाहपुर को उन्होंने सामानों की लम्बी सूची बनाकर भेजी, जो सामान्यतः अदेय थी । दैवयोग से अमावस्या का मेला पड़ा । तत्कालीन महन्त श्री गद्दी पर विराजमान थे । नागाओं का एक झुण्ड रामषाला में आया और तरह-तरह से गन्दगी फैलाने लगा । कुछ ने पान खाकर थूका, कुछ ने मूँगफली का छिलका खाकर फेंका तथा कुछ ने गन्ना चूसकर उसकी खोयी फेंकी । पुजारी तथा अन्य लोगों के मना करने पर भी वे न माने । उसी में से एक नागा महन्त साहेब के पास गया और गद्दी पर बैठ गया । जब खिदमतदार ने मना किया तो वह बोला - ‘‘हम भी तो साधू और महन्त है । ’’ सेवक ने कहा यह तो आप ठीक ही कहते हैं, पर आप यहाँ के महन्त नहीं है ।’’ यहाँ गद्दी पर यहीं का महन्त बैठता है । इतना कहने पर भी वह न माना और जिद वष बैठा रहा । तब महन्त साहेब गुरूप्रसाद दास यह कहते हुए ेगद्दी छोड़कर चले गये, कि तुम्ही बैठो । मैं जा रहा हूँ । साहेब देखें, मैं कुछ नहीं कहूँगा । वे बाहर चबूतरे पर आकर बैठ गये । इस घटना के प्रत्यक्षदर्षी लोगों का कहना है- ‘‘बाबा साहेब सिद्धादास की समाधि से सारग की एक मक्खी निकली और देखते ही देखते उसके साथ हजारों मक्खियों का झुण्ड हो गया, उन्होंने नागाओं को काटना षुरू किया । नागा लोग भागे और मक्खियां उनका वैसे ही पिदा करती रहीं जैसे दुर्वासा ऋशि का पीछा सुदर्षन चक्र ने किया था या फिर इन्द्र पुत्र जयन्त का पीछा भगवान राम के सींक के बाण ने किया था । मक्खियों ने उनके हाथी, घोड़ो व ऊँटों को भी काटा, जिससे पूरी जमात में भगदड़ मच गयी । आष्चर्य की बात तो यह थी कि मक्खियों ने मेला के किसी आदमी को छुआ तक नहीं । उनका आक्रमण सिर्फ नागाओं की जमात पर था । नागा लोग अपने को मक्खियों से बचाने का प्रयास करते रहे-कोई धूल में लोट रहा था, कोई पानी में कूद रहा था, कोई वस्त्र लपेट रहा था तो कोई भागने का प्रयास कर रहा था । बड़ा अजीबोगरीब दृष्य था उस समय का । सचमुच साधु अवज्ञा का ऐसा ही फल मिलता है । लाख कोषिषों के बाद भी असफल होकर, जमात के महन्त ने अपने षार्गिदों की धृर्तता की माफी मांगी । उनके माफी माँगने पर साहेब ने कहा -‘‘ आप साहेब की समाधि पर जाकर माफी माँगे, मैं तो उनका तुच्छ, सेवक हूँ, वे समर्थ हैं, माफ कर देंगें । महन्त ने समाधि पर जाकर माफी माँगी । तब जाकर मधु-मक्खियां षान्त हुई । तब से आज तक नागा लोग यहाँ दिखायी नही पड़े ।
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